नागपुर में दशहरा रैली के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बांग्लादेश का जिक्र करते हुए कहा कि वहां अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की परंपरा दोहराई जा रही है। इसके पीछे कट्टरपंथी सोच है। उन्होंने कहा कि अगर हिंदू दु्र्बल है तो वह अत्याचार को आमंत्रण देता है। ऐसे में हिंदुओं को संगठित और मजबूत होना होगा। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में ऐसी चर्चा चल रही है कि भारत के खिलाफ पाकिस्तान को साथ लेना चाहिए क्योंकि उसके पास न्यूक्लियर वेपन हैं। बता दें कि दशहरे के मौके पर शस्त्रपूजा के इस कार्यक्रम में इस बार इसरो के पूर्व प्रमुख के राधाकृष्णन मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थे।
संघ प्रमुख ने कहा, ‘हमें भविष्य के लिए तैयार होना है। मनुष्य का भौतिक जीवन पहले के मुकाबले काफी सुखी है। लेकिन अपने स्वार्थ के कारण कैसे कैसे युद्ध छिड़ते हैं। इजरायल और हमास के युद्ध की वजह से कितना बड़ा संकट आएगा।अपना देश आगे बढ़ रहा है। तकनीक, शिक्षा के क्षेत्र में देश आगे बढ़ रहा है। ऐसे सभी क्षेत्रों में भारत आगे बढ़ रहा है। समाज की समझदारी भी धीरे-धीरे बढ़ रही है। उसके परिणाम स्वरूप देखते हैं कि जम्मू-कश्मीर के चुनाव भी शांतिपूर्ण ढंग से हो गए। इसका परिणाम देखते हैं पूरी दुनिया में भारत की शाख बढ़ी है। हमारे विचार सबको स्वीकार्य हैं। हमारा योग्य सारी दुनिया में फैशन बन रहा है। दुनिया इसके परिणाम को भी स्वीकार कर रही है। पर्यावरण के बारे में हमारी दृष्टि पूरी दुनिया में स्वीकार्य है। भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है। कई मामलों में देश आगे जा रहा है। देश के युवकों, शासन, प्रशासन, किसानों, जवानों के द्वारा देश को आगे ले जाने का प्रयास हो रहा है।’
उन्होंने कहा,अपने देश के भविष्य के लिए बहुत अच्छे लक्षण हैं। ये करवट बदली है भारत के समाज में। देश आगे बढ़ेगा लेकिन जीवन का मार्ग कभी निश्कंटक नहीं होता। इसलिए कुछ चुनौतियां भी सामने हैं। विजयदशमी के भाषण में दोनों बातों की चर्चा होती है। उस तरफ देश ने रुख कर लिया है और देश आगे भी बढ़ेगा। एक चुनौती ऐसी ध्यान में आती है जिसका विचार हम सबको करना चाहिए। क्योंकि वह केवल हमारे सामने चुनौती नहीं है। केवल भारत वर्ष के सामने नहीं है। पूरी दुनिया में वह चुनौती है। वह बहुत मायावी रूप धारण करके आगे चलती है। उसकी चर्चा करना मुझे आवश्यक लगता है। भारत आगे बढ़ रहा है लेकिन भारत आगे ना बढ़े ऐसी शक्तिया भीं हैं। अपेक्षा यही है कि वे तरह-तरह की चालें चलेंगे। ऐसा हो भी रहा है। आखिर अभी तक भारत छोड़कर बाकी विश्व ने अपने स्वार्थ को छोड़कर दुनिया को बड़ा करने का मार्ग पकड़ा नहीं है। हम सबकी मदद करते हैं। हमसे दुश्मनी करने वालों की भी मदद की है। शांति के लिए अपने हितों का बलिदान भी किया है।’
पाकिस्तान पर भी बरसे भागवत
भागवत ने कहा, ‘कई देशों को लगता है कि भारत आगे बढ़ रहा है। वे उत्पात भी करने वाले हैं। दूसरे देशों में कई तरह के उत्पात खड़े करना, यह सब दुनिया में चलता रहता है। यह दुनिया की रीति बन गई है। हमारे पड़ोस में ही, बांग्लादेश में क्या हुआ। उसके कुछ तात्कालिक पहलू हैं। लेकिन इतना बड़ा उत्पात ऐसे ही नहीं होता। जिनका विषय है वे उसपर चर्चा करें। लेकिन उत्पात के कारण वहां के हिंदू समाज पर होने वाले अत्याचारों की परंपरा को दोहराया गया। पहली बार हिंदू संगठित होकर सामने आया इसलिए कुछ बचाव हो गया। कहीं कुछ गड़ब़ड़ हो तो दुर्बलों पर अपना गुस्सा निकालने की कट्टरपंथी सोच जब तक जिंदा है, वहां के अल्पसंख्यकों पर तलवार लटकती रहेगी। विश्व भर के हिंदुओं को भारत की सरकार की सहायता मिलनी चाहिए। हिंदू समाज को भी ध्यान रखना चाहिए कि दुर्बल रहना और असंगठित रहना अपराध है। अगर हम दुर्बल हैं तो अत्याचार को आमंत्रण दे रहे हैं। ऐसे में जहां भी हैं वहां संगठित करना जरूरी है।’
बांग्लादेश में हो रही भारत के खिलाफ चर्चा
उन्होंने कहा,दूसरी बात है हमारे सबके ध्यान देने की। बांग्लादेश में चर्चा चलती है कि भारत से हमको खतरा है इसलिए पाकिस्तान को साथ लेना चाहिए। उनके पास न्यूक्लियर वेपन है इसलिए उनको रोक सकते हैं। जिस बांग्लादेश के साथ भारत ने कोई वैर भाव नहीं रखा। जिस बांग्लादेश को भारत ने बनवाया। वहां ऐसी चर्चाएं हो रही हैं। यह आखिर कौन करवा रहा है। जो भी यह करवा रहा है उसके बारे में सब जानते है्ं। हमारे देश में भी ऐसा हो। भारत बड़ा बनेगा तो स्वार्थ की दुकानें बंद हो जाएंगी। ऐसा वातावरण पैदा किया जा रहा है कि हम अपने ही बातों पर शर्म करें। विविधताओं को अलगाव में परिवर्तित करना। बड़े समाज में छोटी-मोटी समस्याएं सबकी रहती हैं। कई अन्याय चलते रहते हैं। इन सबको लेकर टकराव पैदा करना। लोगों को उग्र बनाना।
भागवत ने कहा, भारत के चारों ओर, विशेषकर सीमावर्ती प्रांतों में क्या-क्या हो रहा है, हम देख सकते है। समय पर हमको जागना है। नैतिक विचारों का, अध्यात्म के सत्य का बलिशाली अधिष्ठान हमारे राष्ट्रीव व्यवहार को मिला है। इस व्यवहार को समाप्त करने के प्रयासों को रोकना पड़ेगा। इसके लिए समाज को प्रयास करना पड़ेगा। कानून और संविधान की मर्यादा में रहते हुए हमें इसकी योजना बनानी होगी। हम देख रहे हैं कि भारतवर्ष में मन, वचन कर्मों पर कुप्रभाव पड़ रहा है। बच्चों के हाथ में भी मोबाइल है। वे क्या देख रहे हैं, इसपर कोई नियंत्रण नहीं है। ऐसी स्थिति में घर परिवारों में यह नियंत्रण स्थापित करना और अपनी व्यवस्था बनाना जरूरी है। विवेक ना होने के कारण नई पीढ़ी नशीली दवाओं के कुप्रभाव में खोखली हो रही है। कई जगहों पर नशा ना करने वालों को पिछड़ा माना जाता है। हमारे देश की परंपरा क्या है। एक द्रौपदी के वस्त्र को हाथ लगा, महाभारत हो गया। एक सीता का हरण हुआ तो रामायण हो गया।